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Volume : VI, Issue : IV, May - 2016

अहमदबख्श थानेसरी रामायण में सामाजिक समरसता

कृष्ण चन्द रल्हाण, None

By : Laxmi Book Publication

Abstract :

साधारण बोलचाल में हम समाज को व्यक्तियों का समूह कहते हैं। किसी भी व्यक्ति को ज्ञात नहीं है कि उसका जन्म कब, कहां और किस मां के गर्भ में होगा लेकिन जब उसका जन्म हो जाता है तो वह एक विशेष समाज, विशेष जाति, विशेष धर्म, विशेष समुदाय और विशेष क्षेत्र में बंट जाता है। कुछ दिन के बाद वह बोलने लगता है, समझने लगता है, फिर उसकी मां उसे बताने लग जाती है उसकी जाति कौन सी है, उसका धर्म कौन सा है, उसका समुदाय कौन सा है, वह किस समाज का हिस्सा है। व्यक्ति समाज की एक इकाई है लेकिन जब वह समूह में परिवर्तित होता है तो समाज कहलाता है।

Keywords :


    Article :


    Cite This Article :

    कृष्ण चन्द रल्हाण, None(2016). अहमदबख्श थानेसरी रामायण में सामाजिक समरसता. Indian Streams Research Journal, Vol. VI, Issue. IV, http://isrj.org/UploadedData/8325.pdf

    References :

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    2. वही, चम्बोला-162, पृ. 202
    3. रामायण, अहमदबख्श थानेसरी, हरियाणा साहित्य अकादमी, चण्डीगढ़, 1983, चम्बोलो-323, पृ. 133
    4. समाजशास्त्र के सिद्धान्त, विद्याभूषण एवं डी.आर. सचदेवा, किताब महल, इलाहाबाद, 1979, पृ. 80
    5. वही, चम्बोला-322, पृ. 132
    6. वही, चम्बोला-98, पृ. 178
    7. समाजशास्त्र के सिद्धान्त, विद्याभूषण एवं डी.आर. सचदेवा, किताब महल, इलाहाबाद, 1979, पृ. 80
    8. वही, चम्बोला-322, पृ. 132
    9. वही, चम्बोला-98, पृ. 178
    10. वही, चम्बोला-321, पृ. 132
    11. वही, चम्बोला-162, पृ. 202
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    25. वही, चम्बोला-321, पृ. 132
    26. वही, चम्बोला-162, पृ. 202
    27. वही, चम्बोला-321, पृ. 132
    28. वही, चम्बोला-162, पृ. 202
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    34. समाजशास्त्र के सिद्धान्त, विद्याभूषण एवं डी.आर. सचदेवा, किताब महल, इलाहाबाद, 1979, पृ. 80
    35. वही, चम्बोला-322, पृ. 132
    36. वही, चम्बोला-98, पृ. 178

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