Volume : VI, Issue : I, February - 2016 स्वातंत्र्योत्तर चुनाव प्रणाली एवं नेताओ के वायदे (कमलेश्वर के उपन्यासो के आधारपर)अनुप सहदेव दळवी , None By : Laxmi Book Publication Abstract : भारत दुनिया का सबसे बडा लोकशाही प्रदान देश है | इसलिए लोकशाही में चुनावो का महत्वपूर्ण स्थान है | चुनाव प्रजाली ने व्दारा ही लोकतंत्र को जीवित रखा जाता है | भारतीय जनता स्वतंत्रता प्राप्ति से अपने प्रतिनिधी तथा अपनी सरकार चुनने की परम्परा का निर्वाह कर रही है | Keywords : Article : Cite This Article : अनुप सहदेव दळवी , None(2016). स्वातंत्र्योत्तर चुनाव प्रणाली एवं नेताओ के वायदे (कमलेश्वर के उपन्यासो के आधारपर). Indian Streams Research Journal, Vol. VI, Issue. I, http://isrj.org/UploadedData/7847.pdf References : - समग्र उपन्यास (काली आधी)- नामलेश्वर-भूमीन से
- वही –पृ-३७५.
- समग्र उपन्यास (काली आधी)- नामलेश्वर-भूमीन से
- वही –पृ-३७५.
- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी लघु उपन्यासो में युगचेतना – डॉ. अरुणेन्द्रसिंह रठौर-पृ-२४०-२४१
- समग्र उपन्यास (काली आधी)- नामलेश्वर-भूमीन से
- वही –पृ-३७५.
- वही –पृ-३७३.
- वही –पृ-३७५.
- वही –पृ-३७७.
- वही –पृ-३८५.
- वही –पृ-४०४.
- वही –पृ-३७३.
- वही –पृ-३७५.
- वही –पृ-३७७.
- वही –पृ-३८५.
- वही –पृ-४०४.
- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी लघु उपन्यासो में युगचेतना – डॉ. अरुणेन्द्रसिंह रठौर-पृ-२४०-२४१
- समग्र उपन्यास (काली आधी)- नामलेश्वर-भूमीन से
- वही –पृ-३७५.
- समग्र उपन्यास (काली आधी)- नामलेश्वर-भूमीन से
- वही –पृ-३७५.
- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी लघु उपन्यासो में युगचेतना – डॉ. अरुणेन्द्रसिंह रठौर-पृ-२४०-२४१
- वही –पृ-३७३.
- वही –पृ-३७५.
- वही –पृ-३७७.
- वही –पृ-३८५.
- वही –पृ-४०४.
- वही –पृ-३७३.
- वही –पृ-३७५.
- वही –पृ-३७७.
- वही –पृ-३८५.
- वही –पृ-४०४.
- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी लघु उपन्यासो में युगचेतना – डॉ. अरुणेन्द्रसिंह रठौर-पृ-२४०-२४१
- वही –पृ-३९१.
- वही –पृ-३९१.
- वही –पृ-४०४.
- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी लघु उपन्यासो में युगचेतना – डॉ. अरुणेन्द्रसिंह रठौर-पृ-२४०-२४१
- वही –पृ-३९१.
- वही –पृ-३७३.
- वही –पृ-३७५.
- वही –पृ-३७७.
- वही –पृ-३८५.
- समग्र उपन्यास (काली आधी)- नामलेश्वर-भूमीन से
- वही –पृ-३७५.
- वही –पृ-३९१.
- वही –पृ-३७३.
- वही –पृ-३७५.
- वही –पृ-३७७.
- वही –पृ-३८५.
- वही –पृ-४०४.
- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी लघु उपन्यासो में युगचेतना – डॉ. अरुणेन्द्रसिंह रठौर-पृ-२४०-२४१
- वही –पृ-३९१.
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