Volume : VI, Issue : II, March - 2016 गाँधी चिंतन में पर्यावरण चेतनातेजराम सिंह , हिमांषु बौड़ाई By : Laxmi Book Publication Abstract : गाँधी चिन्तन समावेशी विकास का साहित्य है। गाँधी सतत् विकास के लिए अहिंसा एवं पवित्र साधनों पर बल देते है। उनका मानना था जैसा साधन वैसा साध्य‘ ही समग्र विकास का मूल्य है। गाँधी का विकास से तात्पर्य वस्तुओं का विकास नहीं अपितु मनुष्यों का विकास है। मनुष्य एवं मनुष्येत्तर दोनों का विकास है। यह तभी हो सकता है जब प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित दोहन न हो रहा हो। गाँधी मनुष्य जीवन के साथ-साथ समस्त प्राकृतिक जगत की चिन्ता करते हैं। उन्हें विकास के स्त्रोतों के अस्तित्व की चिन्ता है। गाँधी पारम्परिक भारतीय चिंतन की तरह समस्त प्रकृति को पूज्य मानते हैं। गाँधी का सादा जीवन भी पर्यावरण चेतना की अभिव्यक्ति है। मनुष्य प्रकृति का सूक्ष्म अंश है यदि वह इसके विधान को नहीं मानेगा, तो यह मानव को दण्डित करेगी और किया है। गाँधी का चिन्तन इस दृष्टि से प्रकृति विधान का नैतिक दस्तावेज है। जिसमें सामाजिक एवं पर्यावरणीय चेतना का स्पष्ट उल्लेख है। Keywords : Article : Cite This Article : तेजराम सिंह , हिमांषु बौड़ाई(2016). गाँधी चिंतन में पर्यावरण चेतना. Indian Streams Research Journal, Vol. VI, Issue. II, http://isrj.org/UploadedData/7820.pdf References : - श्रीमन्नारायण, गाँधी की पुस्तक ग्राम-स्वराज्य के प्राक्कथन से, नवजीवन प्रकाशन मन्दिर, अहमदाबाद, 2003, पृष्ठ-4, 5
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