DOI Prefix : 10.9780 | Journal DOI : 10.9780/22307850
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Volume : V, Issue : VI, July - 2015

'प्रगतिवादी काव्य' में व्यंग्य चेतना

मीनू रानी धर्मपत्नी श्री रणवीर सिंह, None

DOI : 10.9780/22307850, By : Laxmi Book Publication

Abstract :

प्रगतिवादी विचारधार माक्र्सवाद से अनुप्राणित थी। भारतीय राजनीति के क्षेत्र में माक्र्सवादी चेतना के अभ्युदय के साथ-साथ हिन्दी साहित्य में प्रगतिवादी चेतना का उद्भव हुआ। डॉ. मदान के अनुसार - प्रगतिवाद का प्रेरणास्त्रोत माक्र्सवादी जीवन - दर्शन है जिसके अनुसार जीवन तथा जगत की व्याख्या द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के आधार पर की जाती है। इसी जीवन - दृष्टि से प्रेरित प्रगतिवादी काव्य की विशेषताओं को पंजीकृत भी किया गया है-जैसे इनमें जन-जीवन की अभिव्यक्ति है, हताश भावना का विरोध है, धारती की गरिमा है, “शोषित के प्रति क्रोध तथा घृणा की अभिव्यंजना है, दीन-भाव का तिरस्कार है। व्यंग्य का महत्व है, वर्गहीन समाज की स्थापना के लिए संघर्ष है, मरणशील एवं गलनषील सामन्ती तथा पूंजीवादी संस्कृति का खण्डन है|” इस काव्यधारा में “शोषित के प्रति क्रोध तथा घृणा की भावना ने ही व्यंग्य का स्वरूप ग्रहण है। छायावाद के जीवन-काल में ही इस काव्य-धारा ने कवियों के मानस को आन्दोलित कर दिया था। उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में प्रेमचन्द का सारा साहित्य इसी भावधारा से प्रेरित था।

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